बचे हुए खाने से 8% ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन

बचे हुए खाने में कटौती करने से पर्यावरण को कई फायदे हैं। इससे संसाधन बचेंगे। खाना बनाने और उसकी सप्लाई से जुड़े कामों में लगने वाले ईंधन की भी बचत होगी। सड़क किनारे या भूमिगत स्टोरेज में खाने-पीने की चीजों के सड़ने से मीथेन गैस बनती है। मीथेन उन ग्रीनहाउस गैसों में शामिल है जिनसे जलवायु परिवर्तन हो रहा है। विश्व रिसोर्स इंस्टीट्यूट के अनुसार फूड वेस्ट के कारण दुनिया में हर वर्ष 8% ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। इसके साथ जो खाना बचा रह जाता है, उसके उत्पादन में कनाडा के आकार की जमीन और कृषि के उपयोग का 25% पानी लगता है।


इंस्टीट्यूट के अनुसार यदि बचा खाना कोई देश होता तो वह अमेरिका, चीन को छोड़कर किसी भी अन्य देश से अधिक ग्रीन हाउस गैसें छोड़ता। मोंटाना स्टेट यूनिवर्सिटी में फूड, न्यूट्रिशन के एसोसिएट प्रोफेसर कारमेन शैंक्स का कहना है, अच्छे खाद्य पदार्थ बेकार फेंके जाने से खाने के साथ पौष्टिक वस्तुओं की कमी भी होती है। दरअसल, ताजा और सेहतमंद खाना ही सबसे ज्यादा बेकार बचता है। फूड वेस्ट पैसे के हिसाब से भी नुकसानदेह है। पर्यावरण ग्रुप नेचुरल रिसोर्सडिफेंस काउंसिल के मुताबिक चार व्यक्तियों के औसत अमेरिकी परिवार का हर वर्ष एक लाख रुपए से अधिक का खाना बिना खाए रह जाता है।


कृषि विभाग ने बताया है कि अमेरिका में 40% बचा खाना फेंका जाता है। यह दुनिया में सबसे अधिक है। एक स्टडी से पता लगा है कि अधिकतर अमेरिकी उपयोग की तारीख निकट आने से पहले ही पैकेज्ड फूड फेंक देते हैं। जबकि पैकेट पर फूड के खराब होने जैसी कोई जानकारी नहीं रहती है। खाने को बेकार जाने से बचाने में सरकारी संस्थानों, बड़ी कंपनियों, होटलों, रेस्तरां, किसान और फूड उत्पादन से जुड़े अन्य लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।